जोगी के शेर
१- ज़माना अपना सर झुका के, दुआएं देता
आपने गर किसी, पत्थर को संवारा होता ।
२- हमारे दौर के लोगों का, हाल मत पूछो
ऐसे हंसते हैं कि, रो देने का जी करता है ।
३- मैंने ख़त लिखने यकीनन, इसलिए चालू किए
दिल की सब बातें, नहीं हो पातीं टेलीफोन पर ।
४- छुआ है जब से उस, हुस्न-ए-कली को
मैं भीतर तक, महकता जा रहा हूँ ।
५- मैकदे जाते हैं, न ढूँढते हैं पैमाने
पीने वाले तो निगाहों से भी, पी लेते हैं ।
६- जो जाल बिछाने वाले हैं, घोसला बनाना क्या जानें
सरकार बचानी आती है, इन्सान बचाना क्या जानें ।
७- सावन में अबकी इस तरह, बरसीं मुसीबतें
छत तक नहीं बची, मेरे कच्चे मकान की ।
८- धमाका क्यूँ नहीं होता है, कभी उनके घर
वो जो बमों की, नुमाइश लगाये बैठे हैं ।
९- हुआ है हादसा सब लोग, राहत लेके जाएंगे
चलो बच्चों को हम भी, कुछ खिलौने बाँट आते हैं ।
१०- जो गुल औ पत्तियां ना हों, शजर पूरा नहीं होता
बिना बच्चों के जैसे कोई, घर पूरा नहीं होता ।
डॉ. सुनील जोगी, दिल्ली, भारत
मोबाइल नं. - O9811005255
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शुक्रवार, 5 सितंबर 2008
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3 टिप्पणियां:
bahut badiya likha hain
achha hoga aap
शब्द पुष्टिकरण
hata de
taki tippani dete hue pareshani na aaye
१०- जो गुल औ पत्तियां ना हों, शजर पूरा नहीं होता
बिना बच्चों के जैसे कोई, घर पूरा नहीं होता ।
umda.
सटीक लिखा है आपका हार्दिक स्वागत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
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